‘हरियाणा के इतिहास के स्त्रोत’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘History And Interesting Facts of Haryana State’ using the download button.
Table of Contents
आर्य कबीले जब भारत आये तो ये सबसे पहले हरियाणा में ही बसे ये लोग कहां से आये इस विषय पर विद्वानों में मतनेद आज भी जारी है। लेकिन ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि आर्य लोग भारत में आने से पहले मध्य एशिया में बसते थे। –
अतः यह स्वाभाविक है कि आर्य लोगों ने भारत आने से पहले कई प्रकार के भौगोलिक स्थल देखे होंगे लेकिन जब वे हरियाणा की सरस्वती, द व्यद्वाती व यमुना द्वारा सिंचित व हरी भरी भूमि में पहुंचे तो यहीं पर बस गए। इस प्रकार घुमंतु आर्य कबीलों का प्रथम निवास स्थान हरियाणा प्रदेश की बना।
अब स्थाई रूप से यहां पर बस गए तथा खेती करने लगे और इस प्रकार हरियाणा से ही वैदिक सभ्यता का शुभ आरंभ हुआ। यहीं पर सरस्वती और द प्यद्वाती नदियों के किनारों पर बैठकर उन्होंने वैदिक यज्ञों का विकास किया।
[लाल जैसे कुछ विद्वान आर्य को (PG.W.) चित्रित घुसर म द्माण्ड की सभ्यता से जोड़ते हैं। उनका कहना है कि इस प्रकार के म माण्डों का इस्तेमाल वैदिक आर्य ही करते थे जिनका मुख्य धंधा खेती था चित्रित घुसर म माण्डो से संबंधित स्थल सारे हरियाणा में फैले पड़े हैं।
ऋग्वेद से हमें जानकारी मिलती है कि सरस्वती और द ष्टाद्वाती नदी के आसपास भरत नामक कबील का राज्य था।
इसके कबीले का मुख्य राजा दिवोदास था जिसका संबंध त त्सुवंश से था। दिवोदास ने अपने राज्य को बढ़ाने के लिए पाणी नामक लोगों से युद्ध किया था।
दिवोदास का पुत्र सुदास एक शक्तिशाली राजा था। उसने दस राजाओं के संघ को यमुना नदी के किनारे पर हराया। इस प्रकार वह समस्त सप्त सिंधु प्रदेश का एक मात्र शासक बन गया।
पुरु लोग जो सरस्वती की दूसरी तरफ राज्य करते ये भी भरतो से मिल गए और दोनों पुरु भरत कहलाए और इनके समय में वैदिक संस्कति अपनी ऊंचाईयों तक पहुंच गई।
कुछ समय कुरु नामक शक्तिशाली जन ने पुरुओं को यहां से खदेड़ दिया तथा अपना राज्य स्थापित कर लिया।
कुरुओं ने सरस्वती और यमुना नदी की घाटियों के जंगलों को साफ किया तथा यहां हल से खेती आरंभ की। जैसा कि हमें वामन पुराण से पता चलता है। इस प्रकार वे आर्थिक रूप से सम द्ध हो गए तथा वैदिक सभ्यता का इनके समय में महत्वपूर्ण विकास हुआ।
महाभारत प्राचीन भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य में वर्णित घटनाओं के संबंध में विद्वानों में यह मतभेद है कि ये घटनाएं काल्पनिक है अथवा वास्तविक अर्थात बहुत से विद्वान महाभारत युद्ध की ऐतिहासिकता के बारे में संदेह करते हैं।
महाभारत के संबंध में मिलने वाले साहित्यिक व पुरातात्विक प्रमाणों में परस्पर विरोधाभास होने के कारण इस प्रकार के मतभेद का होना स्वाभाविक है।
महाभारत महाकाव्य के प्रारंभ में ही एक ऐतिहासिक कविता है जिसका शीर्षक है ‘जय’ इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की श्री जो कि इस युद्ध के समकालीन था और उसने इस युद्ध को प्रत्यक्ष रूप से देखा था।
महाभारत का यह युद्ध कौर और पाके मध्य हुआ था। पूर्व वैदिक साहित्य के कुछ राजाओं के नाग मिलते हैं जैसे सिरु देश, शांत, घर्तराष्ट्र विचित्रवीर्य आदि पूर्व वैदिक साहित्य में वर्णित इन सभी राजाओं के नाम का उल्लेख महाभारत और पुरानी में कर
और पाण्डवों के पूर्वजों के रूप में हुआ है। अर्थात कौरवों और पाण्डवों के पूर्वज पूर्व वैदिक काल में भी राज्य करते थे।
इन राजाओं के अतिरिक्त महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले देवकीपुत्र कष्ण और शिखण्डी का भी महाभारत व पुराणों में उल्लेख मिलता है।
यहां यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि महाभारत के प्रारंभिक माग जय की रचना, महाभारत युद्ध की घटना के बहुत अधिक देर बाद नहीं हुई बल्कि वेदों की रचना के तुरंत बाद ही इसकी रचना हुई।
यही कारण है कि वेदों में तथा युद्ध में भाग लेने वाले योद्धाओं का वेदों में उल्लेख नहीं है। इसीलिए जिस प्रकार वैदिक साहित्य का कोई भी काल्पनिक नहीं मानता इसी प्रकार से ये पात्र भी काल्पनिक नहीं थे।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 120 |
PDF साइज़ | 50 MB |
Category | History |
Source/Credits | Google.Drive.Com |